
सीतापुर। श्रीनिवासन जी, एक ऐसा नाम जो किसी एक व्यक्ति का परिचय भर नहीं था, बल्कि इंसानियत की मिसाल था। मूल रूप से आंध्र प्रदेश से आए श्रीनिवासन जी ने सीतापुर को अपनी कर्मभूमि बना लिया और यहां के लोगों के दिलों में एक खास जगह बना ली।
जीवन ने उन्हें कई कठिन परीक्षाओं से गुज़ारा, अकेलेपन की मार झेलनी पड़ी, मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। समाज ने जब उन्हें दरकिनार कर दिया, तब उन्होंने मानवता के रिश्ते को अपनाया और इसी बंधन में उन्होंने ऐसे लोगों का साथ पाया जो उनके अपने खून के नहीं थे, लेकिन आत्मा से जुड़ गए थे।
उनके एक करीबी ने कहा—”हमारे बीच कोई औपचारिक रिश्ता नहीं था, लेकिन उन्होंने मुझे अपने जीवन का सबसे निकट का साथी माना। उनकी आंखों में मेरे लिए जो विश्वास था, वह आज भी मेरी आत्मा को छूता है।”
दुखद रूप से, जब श्रीनिवासन जी का देहांत हुआ, तब वह व्यक्ति रायपुर में थे और उन्हें अंतिम विदाई देने का सौभाग्य नहीं मिल सका।
यह केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि उस भावनात्मक रिश्ते का अंत है जो हर इंसान के भीतर जिंदा होना चाहिए। श्रीनिवासन जी की विदाई केवल एक शरीर की विदाई नहीं है, यह एक विचार, एक संवेदना और एक जीवंत मानवीय रिश्ता का अंत है।
श्रीनिवासन जी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा जीवित रहेंगे—
हमारी यादों में, सीतापुर की गलियों में, और उन सभी दिलों की दुआओं में जिनके लिए उन्होंने एक रूह की तरह जीवन जिया।